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व्यतिरेक  : पुं० [सं० वि-अति√रिच्+घञ्] १. अभाव। २. अन्तर। भेद। ३. बढ़ती। वृद्धि। ४. अतिक्रमण। ४. जो चीजों की ऐसी तुलना जो उनके परस्पर विरोधी गुणों को आधार बनाकर की गई हो। ५. साहित्य में एक अर्थालंकार जो उस समय माना जाता है जब उपमान की अपेक्षा उपमेय का गुण विशेष के कारण उत्कर्ष बताया जाता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
व्यतिरेकी (किन्)  : वि० [सं० वि-अति√रिच्+धिनुण] वह जो किसी का अतिक्रमण करता हो। भिन्नता या भेद उत्पन्न करनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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