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बंध  : पुं० [सं०√बंध् (बंधना)+घञ्] १. वह चीज जिससे कोई दूसरी चीज बाँधी जाय। जैसे—डोरी फीता रस्सी आदि। २. बाँधने की क्रिया या भाव। ३. बंधन। ४. किसी को पकड़कर बाँध रखने की क्रिया। कैद। ५. कोई चीज अच्छी तरह गँठ या बाँधनेकर तैयार करना। जैसे—काव्य-ग्रंथ का सर्ग-बंध। ६. रचना करना। बनाना। ७. कल्पना करना। ८. गद्य या पद्य के रूप में साहित्यिक रचना करना। निबंध रचना। ९. लगाव। संबंध। १॰. आपस में होनेवाला एक प्रकार का निश्चय। ११. योग साधन की कोई मुद्रा। जैसे—उड्डीयान बंध। १२. कोक शास्त्र में रति के मुख्य सोलह आसनों में से एक आसन। १३. रति या स्त्री-सम्भोग करने का कोई आसन या मुद्रा। १४. चित्रकाव्य में छंद की ऐसी रचना जिसकी कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार उसकी पंक्तियों के अक्षर बैठाने से किसी विशेष प्रकार की आकृति या चित्र बन जाय। जैसे—अश्वबंध, ख़ड्गबंध छत्र-बंध आदि। १५. बनाये जानेवाले मकान की लम्बाई औरचौड़ाई का योग। १६. काया। शरीर। १७. जलाशय़। किनारे का बाँध। पुं०=बंधु। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंध-करण  : पुं० [ष० त०] कैद करना। कारावास में बन्द करना।
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बंध-तंत्र  : पुं० [मध्य० स०] किसी राजा अथवा राज्य की सम्पूर्ण सैनिक शक्ति। पूरी सेना।
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बंध-पत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. विधिक दृष्टि से मान्य वह पत्र जिस पर हस्ताक्षर करनेवाला व्यक्ति अपने आपको कोई काम करने के लिए प्रतिज्ञा बद्ध करता है। जैसे—नियत काल तक कोई काम या नौकरी करते रहने, नियत समय पर कहीं उपस्थित होने या कुछ धन देने का बंध-पत्र। २. एक प्रकार का सार्वजनिक ऋण-पत्र जिसमे निश्चित समय के अन्दर कुछ विशिष्ट नियमों या शर्तों के अनुसार लिया हुआ ऋण चुकाने की प्रतिज्ञा होती है। (बांड)। विशेष—अंतिम प्रकार का बंध-पत्र राज्यों नगर-निगमों और बड़ी-बड़ी व्यापारिक संस्थाओं के द्वारा प्रचलित होते हैं।
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बंध-मोचनिका  : स्त्री० [सं० ष० त०] एक योगिनी का नाम।
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बंध-मोचिनी  : स्त्री०=बंधमोचनिका।
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बंधक  : वि० [सं०√बंध् (बंधना)+ण्वुल्-अक] १. बाँधनेवाला। २. (पदार्थ) जो किसी से रुपए उधार लेने के समय इस दृष्टि से जमानत के रूप में उसके पास रखा गया हो कि जब तक रुपया (और सूद) चुकाया न जायगा, तब तक वह उसी के पास रहेगा। रेहन। ३. अदला-बदली या विनिमय करनेवाला। पुं० [सं० बंध+कन्] लेन-देन या व्यवहार का वह प्रकार जिसमें किसी से रुपया उधार लेने के समय कोई मूल्यवान् वस्तु इस दृष्टि से महाजन के पास जमानत के तौर पर रख दी जाती है कि यदि ऋण और ब्याज न चुकाया जा सके तो महाजन वह वस्तु बेचकर अपना प्राप्य धन ले सकता है। रेहन। (मार्टगेज)।
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बंधक-कर्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] वह जो कोई चीज बंधक रूप में किसी के यहाँ रखता हो। (मार्टगेजर)।
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बंधकी  : स्त्री० [सं० बंधक+ङीष्] १. व्यभिचारिणी स्त्री। २. रंडी। वेश्या। वि० [हिं० बंधक] जो बंधक के रूप में पड़ा या रखा गया हो। जैसे—बंधकी मकान।
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बंधन  : पुं० [सं०√बंध्+ल्युट—अन] १. बँधने या बाँधने की क्रिया या भाव। २. बाँधनेवाली कोई चीज, तत्त्व या बात। जैसे—जंजीर, डोरा रस्सी प्रतिज्ञा वचन आदि। ३. कोई ऐसी चीज या बात जो किसी को उच्छृंखल होने या मनमाना आचरण अथवा व्यवहार करने से रोकती है। कोई ऐसा तत्त्व या बात जो किसी को नियमित या मर्यादित रूप से आचरण करन के लिए बाध्य करती हो। जैसे—प्रेम या समाज का बंधन। ४. वह स्थान जहाँ कोई बाँध या रोककर रखा गया हो अथवा रखा जाता हो। जैसे—कारागार आदि। ५. कोई चीज अच्छी तरह गठ या बाँधकर तैयार करना। जैसे—सेतु-बंधन। ६. शरीर के अन्दर की रगें जिनसे भिन्न-भिन्न अंग बँध रहते हैं। मुहावरा—(किसी के) बंधन ढीले करना=(क) बहुत अधिक मारना-पीटना। (ख) सारी शेखी या हेकड़ी निकाल देना। ७. नदियों आदि का बाँध। ८. पुल। सेतु। ९. वध। हत्या। १॰. हिंसा। ११. शिव का एक नाम।
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बंधन-ग्रंथि  : स्त्री० [ष० त०] १. शरीर में वह हड्डी जो किसी जोड़ पर हो। २. फाँस। ३. पशुओं को बाँधने की डोरी या रस्सी।
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बंधन-पालक  : पुं० [ष० त०] कारागार का प्रधान अधिकारी।
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बंधन-रक्षी (क्षिन्)  : पुं० [सं० बंधन√रक्ष्+णिनि] कारागार का प्रधान अधिकारी।
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बंधन-स्तंभ  : पुं० [ष० त०] वह खम्भा या खूँटा जिससे पशुओं को बाँधा जाता है।
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बँधना  : अ० [हिं० ‘बाँधना’ का अ० रूप] १. बंधन मे आना या पड़ना। बाँधा जाना। २. डोरी, रस्सी आदि से इस प्रकार लपेटा जाना अथवा कपड़े आदि की गाँठ से इस प्रकार कसा या जकड़ा जाना कि जल्दी उससे छूटा न जा सके। जैसे—गौ या घोड़ा बँधना, गठरी या पारसल बँधना। ३. किसी प्रकार के नियमन, प्रतिबंध आदि से युक्त होना। जैसे—प्रतिज्ञा या वचन से बँधना। ४. कारागार आदि में रखा जाना। कैद होना। जैसे—दोनों गुडे साल-साल भर के लिए बंध गये। ५. अच्छी तरह गठकर ठीक या प्रस्तुत होना। बनाया जाना। रचित होना। जैसे—मजमून बँधना। ६. पालन, प्रचलन आदि के लिए नियत या निर्धारित होना। जैसे—कायदा या नियम बँधना। ७. किसी के साथ इस प्रकार संबंद्ध संयुक्त या संलग्न होना कि जल्दी अलगाव या छुटकारा न हो। उदाहरण—अली कली ही तै, बँध्यो आगे कौन हवाल।—बिहारी। ८. ध्यान, विचार आदि के संबंध में निरंतर कुछ समय तक एक ही रूप में बना या लगा रहना जैसे—किसी आदमी या बात का ख्याल बँधना।
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बंधनागार  : पुं० [सं० बंधन-आगार, ष० त०] कारागार।
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बंधनालय  : पुं० [सं० बंधन-आलय० , ष० त०] कारागार।
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बंधनि  : स्त्री०=बंधन।
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बंधनी  : स्त्री० [सं०√वंध्+ल्युट-अन, ङीष्] १. शरीर के अन्दर की वे मोटी नसें जो संधि-स्थान पर होती है और जिनके कारण दो अवयव आपस में जुड़े रहते हैं। २. वह जिससे कोई चीज बाँधी जाय।
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बंधनीय  : वि० [सं०√बंध्+अनीयर्] जो बाँधा जा सके या बाँधा जाने को हो। पुं० १. बाँध। २. पुल। सेतु।
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बंधव  : पुं०=बाँधव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंधवाना  : स० [हिं० बाँधना का प्रे०] १. बाँधने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को कुछ बाँधने में प्रवृत्त करना। जैसे—बिस्तर बँधवाना। २. नियत या मुकर्रर कराना। ३. वास्तु आदि की रचना कराना। जैसे—कुआँ या तलाब बँधवाना। ४. बंधन अर्थात् कारागार आदि में डलवाना या रखवाना। जैसे—चोरों को बँधवाना।
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बंधान  : स्त्री० [हिं० बँधना] १. बँधे हुए की अवस्था या भाव। २. वह नियत परम्परा या परिपाटी जिसके अनुसार कुछ विशिष्ट अवसरों पर कोई विशिष्ट काम करने का बंधन लगा होता है। ३. वह धन जो उक्त परिपाटी के अनुसार दिया या लिया जाय। ४. संगीत में गीत, ताल, स्वर, लय आदि के संबंध में बँधे हुए नियम। ५. बाँध।
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बंधाना  : स०=बँधवाना।
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बंधानी  : पुं० [सं० बंध] बोझ ढोनेवाला। मजदूर। कुली। स्त्री०=बंधान।
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बंधाल  : पुं० [हिं० बंधान] जलयान, नाव आदि के पेदें का वह भाग जिसमें छेदों में से रिसकर आया हुआ पानी जमा होता है और जो बाद में उलीचकर बाहर फेका जाता है। गमतखाना। गमतरी।
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बंधिका  : स्त्री०=[हिं० बंधन] करघे में की वह डोरी जिसमें ताने की साँधी बाँधी जाती है। (जुलाहे)
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बंधित  : भू० कृ० [सं० बंध्या] बाँझ। (डिंगल)
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बंधित्र  : पुं० [सं०√बंध्+इत्र] १. काम-देव। २. तिल। (चिन्ह)। ४. चमड़े का बना हुआ पंखा।
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बंधी (धिन्)  : वि० [सं० बंध+इनि] १. बंधन में कसा, जकड़ा या पड़ा हुआ। २. जिसमें या जिसके लिए किसी प्रकार का बंधन हो। स्त्री० [हिं० बाँधना] १. बँधे हुए होने की अवस्था या भाव। २. बँधा हुआ क्रम। नियमित रूप से या नियत समय पर नियत समय पर नित्य किया जानेवाला काम। जैसे—हमारे यहाँ दूध की बंधी लगी है। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना।
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बंधु  : पुं० [सं०√बंध् (बन्धन)+उ] १. भाई। भ्राता। २. परम आत्मीय और भाइयों की तरह साथ रहने का काम आनेवाला व्यक्ति। ३. ऐसा प्रिय मित्र जिसके साथ भाइयों का सा व्यवहार हो। ४. पिता। ५. एक वर्ण वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः तीन-तीन भगण और दो दो गुरु होते हैं। दोधक। ६. बंधूक नामक पौधा और उसका फूल।
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बंधु-कृत्य  : पुं० [सं० ष० त०] व्यक्ति का अपने भाई-बंधुओं तथा स्वजनों के प्रति होनेवाला कर्तव्य।
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बंधु-जीव  : पुं० [सं० बंध्√जीव् (जीना)+णिच्+अच्] बंधूक (फौधा और फूल)। दुपहरिया।
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बंधु-जीवक  : पुं० [सं० बंधुजीव+कन्] बंधूक। दुपहरिया।
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बंधु-दत्त  : भू० कृ० [सं० तृ० त०] बंधुओं द्वारा दिया हुआ। बंधुओं से प्राप्त। पुं० बंधुओं स्वजनों आदि द्वारा कन्या को विवाह के अवसर पर दिया जानेवाला धन।
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बँधुआ  : वि० [हिं० बँधना+आ (प्रत्य)] १. जो बँधा रहता हो। २. (पशु आदि) जिसे बाँधकर रखा गया हो। पुं० कैदी। बंदी।
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बंधुक  : स्त्री० [सं० बंधु+उक] १. डेढ़ दो फुट ऊँचा। एक तरह का क्षुप जिसमें गोलाकार लाल रंग के फूल दोपहर के समय खिलते हैं। ३. उक्त क्षुप का फूल जो वैद्यक में बात तथा पित्त नाशक और कफ बढ़ानेवाला माना जाता है। दुपहिया। ३. जारज संतान।
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बंधुका  : स्त्री० [सं० बंधु+कन्+टाप्] व्यभिचारिणी स्त्री।
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बंधुकी  : स्त्री० [सं० बंधु+कन्+ङीष्] व्यभिचारिणी स्त्री।
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बंधुता  : स्त्री० [सं० बंधु+तल्+टाप्] १. बंधु होने की अवस्था या भाव। २. बंधुओं अर्थात् स्वजनों में परस्पर होनेवाला उचित व्यवहार। भाई-चारा। ३. दोस्ती। मित्रता। ४. भाई-बंधु तथा स्वजनों का वर्ग।
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बंधुत्व  : पु० [सं० बंधु+त्व]=बंधुता।
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बंधुदा  : स्त्री० [सं० बंधु√दा (देना)+क+टाप्] १. दुराचारिणी स्त्री। बदचलन औरत। २. रंडी। वेश्या।
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बंधुमान् (मत्)  : वि० [सं० बंधु+मतुप्] जिसके कई या बहुत से बंधु या स्वजन हों।
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बंधुर  : पुं० [सं०√बंधु+उरच्] १. बहरा आदमी। २. हंस। ३. बगुला। ४. मुकुट। ५. गुल दुपहरिया का पौधा या फूल। ६. काकड़ा सिंधी। ७. विंडग। ८. चिड़िया। पक्षी। ९. खली। वि० १. मनोहर। २. नम्र। विनीत। ३. झुका हुआ। सुन्दर। ४. ऊँचा-नीचा।
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बंधुरा  : स्त्री० [सं० बंधुर+टाप्] बंधुदा (दे०)
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बंधुल  : वि० [सं०√बंधु+उलच्] १. झुका हुआ। वक्र। २. सुन्दर। नम्र। पुं० १. वह व्यक्ति जो पर-पुरुष से उत्पन्न हुआ हो, पर किसी दूसरे के घर में पला हो तथा पराये के अन्न से पुष्ट हुआ हो। २. बदचलन स्त्री का लड़का। ३. वेश्या का लड़का।
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बंधूआ  : पुं०=बँधुआ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंधूक  : पुं० [सं०√बंध्+ऊक्] -बंधुक।
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बंधूप  : पुं०=बंधूक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बंधूर  : पुं० [सं०√बंध्+ऊरच्] १. झुका हुआ। २. ऊंचा-नीचा। ३. मनोहर। पुं० छेद।
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बंधेज  : पुं० [हिं० बंधना+एज (प्रत्यय)] १. कोई नियत और परम्परागत प्रथा। विशेषतः बँधी हुई तथा सर्वमान्य ऐसी परम्परा जिसके अनुसार संबंधियों सेवकों आदि को कुछ विशिष्ट अवसरों पर धन आदि दिया जाता है। २. उक्त प्रथा के अनुसार दिया अथवा किसी को मिलनेवाला धन। ३. दे० बाँधनूँ। (छपाई) ४. प्रतिबंध। रुकावट। ५. ऐसी युक्ति जिससे वीर्य को जल्दी स्खलित नहीं होने दिया जाता। वाजीकरण।
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बंध्य  : वि० [सं०√बंध्+यक्] १. जो बँधा जा सके अथवा बाँधने केयोग्य हो। २. कारावास में रखे जाने के योग्य। ३. जो तैयार किये जाने बनाये जाने अथवा निर्मित किये जाने को हो। ४. जो उपजाऊ न हो। ऊसर। ५. बाँझ। (स्त्री)
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बंध्या  : स्त्री० [सं० बंध्य+टाप्] १. स्त्री या मादा प्राणी जिसे संतान न होती हो। बाँझ। पद—बंध्या पुत्र। (देखें)। २. योनि का एक रोग। ३. एक गंध-द्रव्य।
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बंध्या-कर्कोटकी  : स्त्री० [सं० ष० त०] कड़वी ककड़ी। बाँझ-ककोड़ा।
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बंध्यापन  : पुं०=बाँझपन।
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बंध्यापुत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. बाँझ स्त्री का पुत्र अर्थात् ऐसा अनहोना व्यक्ति जो कभी अस्तित्व में न आ सकता हो। २. लाक्षणिक अर्थ में कोई ऐसी चीज या बात जो बंध्या के पुत्र के समान अनहोनी हो।
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बंध्यासुत  : पुं० [ष० त०] बंध्यासुत।
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