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शब्द का अर्थ

तित  : क्रि० वि० [सं० तत्र] १. उस स्थान पर। वहाँ। २. उस ओर। उधर।
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तितक्ष  : वि० [सं०√तिज् (सहन करना)+सन्+अच्] तितिक्षु। पुं० एक प्राचीन ऋषि।
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तितना  : वि०=उतना।
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तितर-बितर  : वि० [हिं० तीतर+बटेर-कुछ एक तरह का कुछ दूसरी तरह का] १. जो अपने क्रम या स्थान से हट-बढ़ कर या अव्यवस्थित रूप से कुछ इधर और उधर हो गया हो। अस्त-व्यस्त। जैसे–बीड़ (या सेना) तितर बितर हो गई। २. अनियमित रूप से बिखरा हुआ। जैसे–घर का सारा सामान तितर-बितर पड़ा है।
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तितरात  : पुं० [?] एक पौधा जिस की जड़ औषध के काम में आती है।
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तितरोखी  : स्त्री० [हिं० तीतर+रोख] एक प्रकार की छोटी चिड़िया।
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तितल  : वि०=शीतल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तितली  : स्त्री० [सं० तित्तरीक] १. एक तरह का उड़नेवाला छोटा कीड़ा जिसके पंख रंग-बिरंगे और सुन्दर होते हैं और जो प्रायः फूलों पर मँड़राता रहता तथा उनका रस चूसता है। २. लाक्षणिक रूप में, सुन्दर बालिका या स्त्री जो बहुत चंचल हो और प्रायः खूब बनी ठनी रहती हो। ३. वन-गोभी का एक नाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तितलौआ  : पुं० दे० ‘तितलौकी’।
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तितलौकी  : स्त्री० [देश०] १. एक प्रसिद्ध लता जिसमें कद्दू के आकार-प्रकार के ऐसे फल लगते हैं जो स्वाद में कड़ुवे या तीते होते हैं। २. उक्त लता का फल।
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तितारा  : पुं० [सं० त्रि+हिं० तार] १. सितार की तरह का तीन तारोंवाला ताल देने का एक बाजा। २. फसल की तीसरी बार की सिचाई। वि० तीन तारोंवाला। जैसे–तितारा डोरा या ताना।
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तितिक्षा  : स्त्री० [सं०√तिज्+सन्+अ-टाप्] सरदी, गरमी आदि सहन करने की शारीरिक शक्ति। २. कष्ट, दुख आदि झेलने का सामर्थ्य। ३. धैर्यपूर्वक या चुप-चाप कोई आघात, आक्षेप आदि सहन करने का भाव। ४. क्षमाशीलता। ५. दे० ‘मर्षण’।
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तितिक्षु  : वि० [सं०√तिज् +सन् +उ] १. जिसमें तितिक्षा अर्थात् सहन्-शक्ति हो। सहनशील। पुं० एक पुरुवंशी राजा जो महामना का पु्त्र था।
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तितिंबा  : पुं०=तितिम्मा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तितिभ  : पुं० [सं० तिति√भण् (बोलना) +ड] १. बीर बहूटी। २. जुगनूँ।
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तितिम्मा  : पुं० [अ०] १. शेष बचा हुआ अंश। अवशिष्ट अंश। २. पुस्तकों आदि का परिशिष्ट। ३. व्यर्थ का झंझट याविस्तार। ४. व्यर्थ का आडंबर। ढकोसला।
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तितिर(तिरि)  : पुं० [सं०=तित्तिर, पृषो० सिद्घि] तीतर (पक्षी)।
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तितिरांग  : पुं० [सं० तितिर-अंग, ब० स०] इस्पात। वज्रलोह।
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तितिल  : पुं० [सं०√तिल् (चिकना करना)+क, द्वित्व] १. मिट्टी की नाँद। २. ज्योतिष में, तैत्तिल नामक करण।
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तितिलिका  : स्त्री० [सं०=तिंतिडिका, ड-ल]=तितिड़िका।
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तितीर्षा  : स्त्री० [सं०√तृ (तैरना)+सन्+अ-टाप्] १. तैरने की इच्छा। २. तरने अर्थात् भव-सागर से पार होने की इच्छा।
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तितीर्षु  : वि० [सं०√तृ+सन्+उ] १. जो तैरने अर्थात् पार उतरने का इच्छुक हो। २. मोक्ष प्राप्ति की इच्छा करने वाला।
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तितुला  : पुं० [देश०] गाड़ी के पहिये का आरा।
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तिते  : वि० [सं० तति] उतने। (संख्या वाचक)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तितेक  : वि० [हिं० तितो+एक] उस मान या मात्रा का। उतना।
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तितै  : क्रि० वि० [हिं० तित+ई (प्रत्य०)] १. उस ओर। उधर। २. उस जगह। वहाँ। ३. वहाँ ही। वहीं।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तितो  : क्रि० वि०=तेता (उतना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तित्तह  : अव्य० [सं० तत्र] उस स्थान पर। वहाँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तित्तिर  : पुं० [सं०तिति√रा(दान)+क] [स्त्री० त्तितरी] १. तीतर नामक पक्षी। २. तितली नाम की घास।
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तित्तिरी  : पुं० [सं० तित्ति√रु (शब्द करना)+डि] १. तीतर पक्षी। २. यास्क मुनि के एक शिष्य जिन्होंने यजुर्वेद शाखा चलाई थी। ३. यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा।
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