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शब्द का अर्थ

तत्त  : पुं=तत्त्व।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
तत्तत्  : सर्व० [सं० द्व० स०] उन उन। जैसे–इनमें से कुछ शब्दों की व्याख्या तत्तत् सास्त्रों में की गई है।
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तत्ता  : वि० [सं० तप्त] [स्त्री० तत्ती] १. जो छूने में अधिक गरम लगे। अधिक तपा हुआ। गरम। जैसे–तत्ता दूध या तत्ती कड़ाही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पद–तत्ता तवा-गरम मिजाजवाला व्यक्ति। २. तेजगतिवाला। उदाहरण–-दिन महि तत्ते हयनि तजि महि मंडे अति घाइ।–चंदवरादाई।
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तत्ताथेई  : स्त्री० [अनु०] नाच के समय जमीन पर पैर पड़ने के शब्द जो नाच के बोल कहे जाते हैं।
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तत्तिम्मा  : पुं० [अ० तत्तिम] १. परिशिष्ट। २. क्रोड़ पत्र।
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तत्तोथंबो  : पुं० [हिं० तत्ता=गरम+थामना] १. लड़ाई-झगड़ा रोकने के लिए दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर शान्त करने की क्रिया या भाव। बीच-बचाव। २. बार-बार आशा दिलाते हुए किसी को उग्र रूप धारण करने से रोक रखने की क्रिया या भाव। बहलावा। जैसे–पावनेदारों को तत्तों-थंबो करके टाल चलना।
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तत्त्व  : पुं० [सं० तन्+त्व] १. आकश, अग्नि, जल, थल और पवन ये पाँच गुण (अथवा इनमें से हर एक) जो प्राचीन भारतीय विचारधारा के अनुसार किसी पदार्थ को अस्तित्व में लाते है और जो जगत् या सृष्टि के मूल कारण कहे जाते हैं। विशेष–सांख्य में तत्त्वों की संख्या २५ मानी गई है। २. आधुनिक रसायन शास्त्र के अनुसार कोई ऐसा पदार्थ जिसमें दूसरें पदार्थों का कुछ भी अंश या मेल न पाया जाता हो, अर्थात् जो सब प्रकार से अमिश्र और विशुद्ध हो। (एलिमेन्ट)। विशेष–पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अब तक १॰॰. से ऊपर ऐसे तत्त्व ढूँढ़ निकाले हैं जो अमिश्र और विशुद्ध रूप से मिलते हैं। ३. कोई मूल, मौलिक या वास्तविक आधार, गुण या बात। सार वस्तु। ४. ईश्वर। ५. यथार्थता।
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तत्त्व-दृष्टि  : स्त्री० [मध्य० स०] १. वह दृष्टि जो किसी बात के मूलकारण या गुण का पता लगाती या उस पर तक पहुँचती हो। २. दिव्य दृष्टि।
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तत्त्व-न्यास  : पुं० [मध्य० स०] तंत्र के अनुसार विष्णु पूजा में एक अंग न्यास जो सिद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
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तत्त्व-भाव  : पुं० [ष० त०] प्रकृति। स्वभाव।
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तत्त्व-विद्या  : स्त्री० [ष० त०] दर्शन शास्त्र।
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तत्त्व-वेत्ता-(त्तृ)  : पुं० [ष० त०] १. जिसे तत्त्व का ज्ञान हो। तत्त्वविद्। २. दार्शनिक।
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तत्त्व-शास्त्र  : पुं० [सं० ष० त०] दर्शन शास्त्र।
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तत्त्वज्ञ  : पुं० [सं० तत्त्व√ज्ञा (जानना)+क] १. वह जो ईश्वर या ब्रह्म को जानता हो। तत्वज्ञानी। ब्रह्मज्ञानी। २. किसी बात या विषय का तत्त्व जानने या समझने वाला व्यक्ति। ३. दार्शनिक।
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तत्त्वज्ञान  : पुं० [ष० त०] आत्मा, परमात्मा तथा उसकी दृष्टि के संबंध में होनेवाला सच्चा या यथार्थ ज्ञान जो मोक्ष का कारण माना गया है। ब्रह्मज्ञान।
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तत्त्वज्ञानी(निन्)  : पुं० [सं० तत्त्वज्ञान+इनि] तत्त्वज्ञ (दे०)।
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तत्त्वतः  : अव्य० [सं०] तत्त्व या सार-भूत गुण के विचार से। यथार्थतः वस्तुतः।
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तत्त्वता  : स्त्री० [सं० तत्त्व+तल्-टाप्] तत्त्व होने की अवस्था, गुण या भाव। २. यथार्थता। वास्तविकता।
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तत्त्वदर्श  : पुं० [सं० तत्त्व√दृश् (देखना)+अण्] १. तत्त्वज्ञ। २. सावर्णि मन्यवन्तर के एक ऋषि का नाम।
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तत्त्वदर्शी(र्शिन्)  : पुं० [सं० तत्त्व√दृश्+णिनि] १. तत्त्वज्ञ। २. रैवत मनु के एक पुत्र का नाम।
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तत्त्वभाषी(षिन्)  : पुं० [सं० तत्त्व√भाष् (कहना)+णिनि] वह व्यक्ति जो यथार्थ या सच्ची बात कहता हो। यथार्थ भाषी।
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तत्त्वमसि  : पद–[सं० तत्-त्वग-असि, व्यस्त पद] वेदान्त का एक प्रसिद्ध वाक्य जिसका अर्थ है तू बही अर्थात् ब्रह्म है।
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तत्त्वावधान  : पुं० [सं० तत्व-अवधान, ष० त०] किसी काम के ऊपर होनेवाली देख-रेख या निरीक्षण।
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तत्त्वावधायक  : पुं० [सं० तत्त्व-अवधायक, ष० त०] देख-रेख या निरीक्षण करनेवाला।
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