शब्द का अर्थ
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गे :
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अव्य० [सं० हे] संबोधन का चिन्ह्र (पूरब)। |
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गेंगटा :
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पुं० [सं० कर्कट] केकड़ा। |
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गेगम :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार का धारीदार या चारखानेदार कपड़ा। सींकिया। |
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गेगला :
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पुं० [?] १. मसूर की जाति का एक प्रकार का जंगली पौधा। २. छोटा बच्चा। ३. निबुद्धि या मूर्ख व्यक्ति। |
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गेगलापन :
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पुं० [हिं० गेगला] १. लड़कपन। २. मूर्खता। |
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गेज :
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पुं० [अ०] १. किसी चीज को नापने या मापने का कोई साधन। २. रेल की दोनों पटरियों के बीच का विस्तार जो साधारणतः ५६½ इंच होता है। विशेष-मानक गेज ५६½ इंच ही माना जाता है, वैसे छोटे तथा बड़े गेजों में भी पटरियाँ होती हैं। |
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गेजुनिया :
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पुं० [देश०] गुलदुपहिया। (पौधा और फूल)। |
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गेटिस :
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पुं० [अं० गेटर] १. सैनिकों आदि के पहनने का कपड़े या चमड़े का वह आवरण जिससे पिंडलियाँ ढकी या बाँधी जाती है। २. कपडे, रबर आदि का वह छोटा तस्मा या पतली पट्टी जिससे पहने हुए मोजे का ऊपरी भाग इसलिए कसा जाता है कि मोजा नीचे न गिरने पावे। |
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गेंठी :
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स्त्री० [सं० गृष्टि, प्रा० गिट्ठि, गेठ्ठि] वाराही कंद। |
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गेंड :
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पुं० [सं० गोष्ठ] १. डंठलों, पत्तियों आदि से बनाया हुआ वह घेरा जिसमें खेतिहर अपना अनाज रखते हैं। २. घेरा। मंडल। ३. ऊख के ऊपर के पत्ते। अगौरा। ४. दे० ‘गेंड़’। |
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गेंड़ :
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स्त्री० [हिं० गेंड़ना] गेंड़ने की क्रिया या भाव। २. मंडलाकार बनाया हुआ गड्ढा, या खींची हुई रेखा। दे० ‘गेंड़’। |
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गेंड़ना :
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स० [हिं० गेंड़] १. खेतों की सीमा निर्धारित करने के लिए उनके चारों ओर मेंड़ बनाना। २. बाढ़ आदि लगाकर चारों ओर से घेरना। ३. अन्न रखने के लिए गेंड़ या घेरा बनाना। ४. लकड़ी के टुकड़े काटने के लिए कुल्हाड़ी से चारों ओर छेव लगाना। ५. दे० ‘गेंड़ना’। |
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गेड़ना :
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स० [सं० गंड==चिन्ह्र] १. किसी चीज को घेरने के लिए उसके चारो ओर गड्ढा, मेंढ़ या और किसी प्रकार का रेखा बनाना। २. किसी चीज के चारों ओर घूमना। परिक्रमा करना। ३. रहट चलाने के लिए उसका हत्था पकड़कर चारों ओरचक्कर लगाना। ४. दे० ‘गेंड़ना’। |
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गेंडली :
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स्त्री० [सं० कुंडली] मंडलाकार घेरा। कुंडली। (साँपों आदि की।) |
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गेंड़ा :
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पुं० [सं० कांड] १. ईख के ऊपर के पत्ते। अगौरी। २. ईख। गन्ना। ३. ईख के छोटे-छोटे टुकड़े। गँडेरी। ४. धातु के टुकड़े पीटने की पत्थर की निहाई। पुं० दे० गैड़ा। |
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गेंड़ी :
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स्त्री० [सं० गंड-चिन्ह] १. गेंड़ने की क्रिया या भाव। २. लड़कों का एक खेल जिसमें किसी मंडलाकार रेखा के बीच में लकड़ी का एक टुकड़ा रखकर और उस पर आघात करके उसे रेखा के बाहर निकालने का प्रयत्न किया जाता है। ३. उक्त खेल की वह लकड़ी जो मंडलाकार रेखा के बीच में रखी जाती हैं। |
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गेंड़ु :
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पुं० [सं०] कंदुक। गेंद। |
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गेंडुआ :
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पुं० [सं० गेंदुक-गेंद] १. बड़ा गेंद। २. सिर के नीचे रखने का गोल तकिया। |
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गेंडुक :
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पुं० [सं० गेंदुक, पृषो० सिद्धि] कंदुक। गेंद। |
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गेंडुरी :
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स्त्री० [सं० कुंडली] १. कपड़े या रस्सी का बना हुआ वह मेंड़रा जिस पर घड़ा रखते हैं अथवा जिसे बोझ उठाने के समय सिर पर रखते हैं। ईडुरी। २. कुंडली या फेंटा (साँपो आदि का)। |
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गेंडुली :
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स्त्री० =गेंड़ुरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेणा :
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पुं० =गहना या आभूषण। (राज०) उदाहरण–गेणोतो म्हाँरे माला दोवड़ी और चन्दन की कुटकी।–मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेंती :
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स्त्री० [?] १. एक प्रकार का छोटा वृक्ष। २. एक प्रकार की कुदाल। |
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गेंद :
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पुं० [सं० पा० गेन्डुक, प्रा० गेन्दुआ, उ० गेण्डु, सिं० खेनुरी, प्रा० गेन्दु, चेण्ड,गु० ने० मरा० गेंद] १. बच्चों के खेलने के लिए कपड़े,चमड़े,रबड़,लकड़ी आदि का बना हुआ एक प्रसिद्ध छोटा गोला। २. वह कलबूत जिसपर रखकर टोपियां,पगड़ियाँ आदि बनाई जाती थी। कालिब। ३. तारों आदि का बना हुआ वह गोलकार घेरा जिसके अन्दर रखकर दीया जलाते थे। |
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गेंदई :
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वि० [हिं० गेंदा] १. गेंदे से संबंध रखनेवाला। गेंदे का २. गेंदे के फूल के रंग का। पीला। पुं० उक्त प्रकार का पीला रंग। |
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गेंदघर :
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पुं० [हिं० गेंद+घर] वह स्थान जहाँ लोग गेंद से तरह-तरह के खेल खेलते हैं। |
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गेंदतड़ी :
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स्त्री० [हिं० गेंद+तड़ीचोट या मार] लड़कों का एक खेल जिसमें वे एक दूसरे को गेंद मारते हैं। |
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गेंदबलल्ला :
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पुं० [हिं० गेंद+बल्ला] १. गेंद और उस पर आघात करने या लकड़ी का बल्ला। २. गेंद, बल्ले तथा यष्टियों से खेला जानेवाला एक प्रसिद्ध खेल जिसमें ग्यारह-ग्यारह खेलाड़ियों की दो टोलियाँ होती हैं और एक दूसरे से अधिक दौंड़े बनाकर विजय प्राप्त करती है। (क्रिकेट)। |
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गेंदवा :
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पुं० १. =गेंड़ुआ (तकिया)। २. =गेंद। |
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गेंदा :
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पुं० [हिं० गेंद] १. एक प्रकार का छोटा पौधा जिसमें पीले, लाल, नारंगी आदि रंगों के फूल लगते हैं। २. उक्त पौधे के फूल जिनकी मालाएं बनती हैं। |
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गेदा :
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पुं० [?] चिड़िया का वह छोटा बच्चा जिसके पर अभी तक न निकलें हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेंदिया :
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स्त्री० [हिं० गेंद+ईया(प्रत्यय)] फूलों को मालाओं के नीचे लटकनेवाला फूल -पत्तों आदि का गुच्छा। |
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गेंदुक :
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पुं० [सं०√गम् (जाना)+ड, ग-इंदु, कर्म० स० गेंदु+कन्] कन्दुक। गेंद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेंदुवा :
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पुं० =गेंड़ुआ। |
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गेंदौरा :
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पुं० =गिँदौड़ा। |
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गेन :
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पुं० =गगन। (आकाश) उदाहरण–कोपि कन्ह धायौ वली जनु अग्नि विच्छुटी गेन।–चन्दबरदाई। |
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गेनुर :
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स्त्री० दे० ‘गोनर’। |
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गेबा :
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पुं० [देश०] करघे में, कंघी की वे तौलियाँ जिनके बीच में से ताने के सूत आपस में उलझने से बचाने के लिए निकाले जाते हैं। |
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गेय :
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वि० [सं०√Öगै (गाना)+यत्] १. गाये जाने के योग्य। २. जो गाया जा सके। जैसे–गेय पद। ३. प्रशंसनीय। श्रेष्ठ। |
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गेरना :
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स० [हिं० गिराना का पुराना रूप] १. (गले आदि के ऊपर से) डालना। उदाहरण–माला पै लाल गुलाल गुलाब सों गेरि गरे गजरा अलबैलौ।–पद्याकर। २. गिराना। स० दे० गेंड़ना। |
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गेरवाँ :
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पुं० दे० ‘गेराँव’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेराँई :
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स्त्री० =‘गेराँव’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेराँव :
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पुं० [हिं० गर-गला] १. चौपायों के गले में बाँधी जानेवाली रस्सी। पगहा। २. उक्त रस्सी का वह मंडलाकार अंश जो चौपायों के गले में पड़ा रहता है। पुं० हिं० गांव का अनु०। जैसे–गाँव-गेराँव की चीज। |
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गेरुआ :
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वि० [हिं० गेरू+आ (प्रत्यय)] १. गेरू के रंग का। मटमैलापन लिए लाल रंग का। २. गेरू-मिट्टी के रंग से रंगा हुआ। गैरिक। जोगिया। भगवा। पुं० १. गेरू से तैयार किया हुआ रंग। जोगिया। (सैमन) २. गेरू के रंग का एक छोटा क्रीड़ा जो फसल की हानि करता है। ३. गेहूँ के पौधे का एक रोग जिससे उनकी पेड़ी बहुत कमजोर हो जाती है। |
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गेरुआ बाना :
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पुं० [हिं०] त्यागियों, योगियों अथवा साधु-संन्यासियों का पहनावा जो गेरुए रंग का होता है। |
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गेरुई :
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स्त्री० [हिं० गेरू] फसल या पौधों को होनेवाला एक रोग जो प्रायः उनकी जड़ों में एक प्रकार के गेरुए रंग के कीड़े लगने से उत्पन्न होता है। |
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गेरुल :
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पुं०=गेंद। |
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गेरुला :
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पुं० [?] जुड़ा या वेणी। (स्त्रियों की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेरू :
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पुं० [सं० गैरिका, पा० गेरुकम्, प्रा० गेरिअ, गैरुष, पं० बं० गेरी, उ० गु० ने० सि० मरा० गेरू] एक प्रसिद्ध खनिज लाल मिट्टी जो प्रायः कपड़े, दीवारे आदि रंगने में और कभी-कभी दवाओं के काम आती है। |
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गेला :
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वि० [हिं० गेया, या गया (बीता) ?] [स्त्री० गेली] १. नासमझ। मूर्ख। २. गया-बीता। तुच्छ। हेय। उदाहरण–गेली दुनियाँ बावली ज्याँ कूँ राम न भावे।–मीराँ। |
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गेली :
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स्त्री० [अं०] छापेखाने में धातु या लकड़ी की वह छिछली किश्ती जिसपर छापे के अक्षर जोड़ या बैठाकर रखे जाते है। पद–गेली प्रूफ इस प्रकार उक्त किश्ती में जोड़कर रखे हुए अक्षरों पद से छापा जाने वाला कागज जिस पर बैठाये हुए अक्षरों की भूलें ठीक की जाती हैं। |
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गेल्हा :
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पुं० [देश०] तेल रखने का चमड़े का बड़ा कुप्पा। (तेली)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेंवर :
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पुं० [सं० गज-वर] १. हाथी। २. बड़ा हाथी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेवर :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़। गँगवा। |
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गेवल :
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वि० [हिं० गाँव] [स्त्री० गवेली] १. गाँव या देहात संबंधी। २. गँवार। देहाती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेसू :
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पुं० [फा०] बालों की लट। जुल्फ। |
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गेह :
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पुं० [सं० ग-ईह, ब० स०] १. रहने की जगह। २. घर। मकान। |
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गेह-पति :
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पुं० [ष० त० ] घर का मालिक। गृहपति। |
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गेहनी :
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स्त्री० [हिं० गेह] १. घर की मालिक स्त्री। गृह-स्वामिनी। गृहिणी। २. पत्नी। भार्या। |
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गेही(हिन्) :
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पुं० [सं० गेह+इनि] घर-बार बनाकर उसमें रहनेवाला व्यक्ति। गृहस्थ। उदाहरण–गेही संग्रह परिहरै, संग्रह करै विरक्त।–भगवत-रसिक। |
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गेहुँअन :
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पुं० [हिं० गेहूँ] मटमैले रंग का एक प्रकार का बहुत जहरीला फनदार साँप। |
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गेहुँआ :
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वि० [हिं० गेहूँ] १. गेहूँ के रंग का। हलका बादामी। २. (शरीर या वर्ण) जो न बहुत गोरा हो और न बहुत साँवला। |
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गेहूँ :
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पुं० [सं० गोधूम, पा० गोधूमो, प्रा० गहूअँ, गहूम, पं० ग्यूँ, गु० घऊँ० बं० गोम, उ० गहम्, मरा० गेहूँ] १. एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी बालों में लगनेवाले दाने छोटे, लंबोतरे बीजों के रूप में होते हैं और जिनके आटे या चूर्ण से कचौरी, पूरी, रोटी आदि पकवान बनते हैं। २. उक्त पौधे के छोटे लंबोतरे दाने या बीज। |
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गेहे-शूर :
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पुं० [सं० त० सप्तमी का अलुक्] वह जो घर में बहादुरी दिखानेवाला हो, बाहरी लोगों के सामने कायर हो। |
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