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गुह  : पुं० [सं०√Öगुह् (रक्षा करना, छिपाना)+क] १. विष्णु। २. कार्तिकेय। ३. गौतम बुद्ध। ४. घोड़ा। ५. मेढ़ा। ६. कंदरा। ७. हृदय। ८. माया। ९. शालिपर्णी। सरिवन। १॰. निषाद जाति का एक नायक जो राम को वनवास के समय मिला था और जिसने उन्हें श्रृंगबेरपुर में गंगा के पार उतारा था। ११. एक प्रकार के बंगाली कायस्थों का अल्ल या उपाधि। पुं० [सं० गूथ=मैल] गुदा मार्ग से निकलनेवाला मल। पाखाना। मुहावरा–(किसी पर) गुह उछालना किसी के निंदनीय कार्यों का प्रचार करना। गुह उठाना (क) पाखाना साफ करना। (ख) तुच्छ से तुच्छ सेवा करना। गुह खाना बहुत ही बुरा या अनुचित काम करना। (किसी का) गुह मूत करना =बच्चे का पालन-पोषण करना। (किसी को गुह में घसीटना=बहुत ही अपमान या दुर्दशा करना। गुह में ढेला फेंकनानीच के साथ ऐसा व्यवहार करना जिससे अपना ही अहित या बुराई होती हो। (किसी को) गुह में नहलाना बहुत अधिक दुर्दशा करना। वि० [सं० गुह्य] रहस्यमय। गूढ़। उदाहरण–बेंधि बार मार हवै गो ग्यान गुह गाँसी।–मीराँ।
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गुह-षष्ठी  : स्त्री० [मध्य० स०] अगहन सुदी छठ जो कार्तिकेय की जन्मतिथि कही गई है।
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गुहज्य  : वि० [सं० गुह्य] छिपा हुआ। गुप्त। उदाहरण–गुहज्य नाम अमीरस मीठाजो षोजै सो पावै।–गोरखनाथ।
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गुहड़ा  : पुं० [देश०] चौपायों का खुरपका नामक रोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहना  : स० गूथना (पिरोना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहराना  : स० गोहराना (पुकारना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहवाना  : स० [हिं० गुहना का प्रे०] गुहने या गूँथने का काम कराना। गुँथवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहा  : स्त्री० [सं० गुह+टाप्] १. गुफा। कंदरा। २. जानवरों के रहने की माँद। चुर। ३. चोरों डाकुओं के छिपकर रहने की जगह। ४. अंतःकरण। हृदय। ५. बुद्धि। ६. शालपर्णी। ७. वह कल्पित मूल स्थान जहाँ से सारी सृष्टि का उदभव तथा विकास माना गया है। उदाहरण–किस गहन गुहा से अति अधीर।–प्रसाद।
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गुहा-मानव  : पुं० [सं० मध्य० स०] इतिहास पूर्व काल के वे मनुष्य जो पाषाण युग में पर्वतों आदि की कदंराओं में रहते थे। (केव-मैन)।
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गुहाई  : स्त्री० [हिं० गुहना] गुहने (गूँथने) की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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गुहाचर  : पुं० [सं० गुहाचर् (गति)+ट] ब्रह्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहाँजनी  : स्त्री० [सं० गुह्य-अंजन] आँख की पलक पर होनेवाली फुँसी। बिलनी। अंजनहारी।
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गुहाना  : स० गुहवाना।
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गुहार  : स्त्री० गोहार।
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गुहारना  : स० [हिं० गुहार] रक्षा या सहायता के लिए पुकार मचाना। उदाहरण–दीन प्रजा दुःख पाइ आई नृप-द्वार गुहारति।–रत्नाकर।
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गुहाल  : स्त्री०==गोशाला।
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गुहाशय  : पुं० [सं०√ गुहाशी(सोना)+अच्] १. बिल या माँद में रहनेवाला जंतु। २. परमात्मा।
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गुहिन  : पुं० [सं०√Öगुह्+इनन्] जंगल। वन।
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गुहिर  : वि०=गंभीर।
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गुहेरा  : पुं० [हिं० गूहना=गूँथना] गहने आदि गूथने का काम करनेवाला व्यक्ति। पटवा। पुं० =गोध (जन्तु)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहेरी  : स्त्री० [सं० गौधेरिका] गुहाँजनी (बिलनी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुह्य  : वि० [सं०Ö गुह+यत्] १. गुप्त रखने या छिपाये जाने के योग्य। २. (अलौकिक या रहस्यमय बात या वस्तु) जिसका ठीक-ठीक अर्थ या स्वरूप समझना कठिन हो। जिसे जानने या समझने के लिए विशेष आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता हो। (एसोट्रिक) ३. रहस्यमय। पुं० १. छल। कपट। २. भेद। रहस्य। ३. ढोंग। ४. शरीर के गुप्त अंग। जैसे–गुदा, भग, लिंग आदि। ४. कछुआ। ६. विष्णु। ७. शिव।
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गुह्य  : वि० [सं० गृह+यत्] १. घर या घर-बार से संबंध रखनेवाला। घर का। २. घर में किया जाने या होनेवाला। जैसे–गृह्य-कर्म। पुं० १. घर में रहनेवाली अग्नि या आग। २. दीपक। दीआ। उदाहरण–देखौ पतंग गृह्य मन रीझा।–जायसी। वि०[सं० Öग्रह् (पकड़ना) +क्यप्] १. ग्रहण किये जाने के योग्य। जिसे ग्रहण कर सके। २. पकड़कर घर में रखा या पाला हुआ। पालतू।
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गुह्य-दीपक  : पुं० [सं० कर्म० स०] जुगनूँ।
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गुह्य-द्वार  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. मल-द्वार। गुदा। २. चोर-दरवाजा।
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गुह्यक  : पुं० [सं०√Öगुह्+ण्वुल्-अक,पृषो० सिद्धि] किन्नर, गंधर्व, यक्ष आदि देवताओं की तरह की एक देव योनि जो कुबेर की संपत्ति आदि की रक्षा करती है।
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गुह्यकेश्वर  : पुं० [सं० गुह्यक-ईश्वर, ष० त०] कुबेर।
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