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कोमल  : वि० [सं०√कु+कलच्, मुट्] १. जिसके देखने, सुनने अथवा स्पर्श होने से प्रिय अनुभूति तथा सुखद संवेदन होता है। जैसे—(क) कोमल किसलय, (ख) कोमल ध्वनि, (ग) कोमल अंग। २. जिसकी ऊपरी सतह मुलायम तथा नुकीली हो। ३. जो रहज में काटा, तोड़ा या मोड़ा जा सके। ४. मनोवृत्ति या हृदय जिसमें उदारता, दया प्रेम आदि सरल भाव पूरी तरह से हों (साँप्ट, उक्त सभी अर्थों के लिए) ५. (संगीत में स्वर) जो अपने साधारणमान से कुछ नीचा या हल्का हो। ‘तीव्र’ का विपर्याय। ६. अपरिपक्व कच्चा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कोमलता  : स्त्री० [सं० कोमल+तल्-टाप्] कोमल होने की अवस्था या भाव।
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कोमला  : स्त्री० [सं० कोमल+टाप्] १. साहित्य में एक वृत्ति या शैली जिसमें प्रसाद गुण की प्रधानता होती है। इसे ‘पांचालों’ भी कहते हैं। २. खिरनी (पेड़ और फल)।
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कोमलाई  : स्त्री०=कोमलता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कोमलांग  : वि० [सं० कोमल-अंग० ब० स०] [स्त्री० कोमलांगी] कोमल और फलतः सुन्दर तथा सुखद अंगोंवाला।
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कोमलाभ  : वि० [सं० कोमल-आभा, ब० स०] कोमल आभावाला। उदाहरण—अलस, उनींदा-सा जग, कोमलाभ, दृग,-सुभग।—पंत।
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