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किन  : सर्व० [सं० किण, मरा० किण-किणें] हिंदी ‘कि’ का बहुवचन। पद—किनहूँ=किसी ने भी। क्रि० वि० [सं० किम् न से] १. क्यों नहीं। उदाहरण—उठि किन उत्तर देत।—सूर। २. चाहे।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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किनंकना  : अव्य० [?] हिनहिनाना (घोड़ों का)।
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किनका  : पुं० [सं० कणिक] [स्त्री० अल्प० कनकी] किसी चीज का बहुत छोटा टुकड़ा। कण। जैसे—अनाज का किनका। चाँदी का किनका।
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किननाट  : स्त्री० [अनु०] आवाज। शब्द। उदाहरण—वपु नखत खुप्परिय किनन किननाट कुरंगिय।—चंदबरदाई।
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किनर-मिनर  : स्त्री०=आनाकानी। उदाहरण—इसलिए वे देने में किनर-मिनर कर रहे थे।—वृन्दावनलाल वर्मा।
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किनवानी  : स्त्री० [?] छोटी-छोटी बूदों की झड़ी। फुहार।
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किनहा  : वि० [सं० कणिक, प्रा० कराणच्य+हा] अन्न या फल जिसमें कीड़े लगे या पड़े हों। काना।
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किनाती  : स्त्री० [?] एक प्रकार की चिड़िया जो नालों के किनारे रहती है।
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किनार  : पुं० =किनारा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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किनारा  : पुं० [फा० किनारः] [स्त्री० अल्पा० किनारी] १. किसी चीज या चौड़ाई की लंबाई के बल का वह सारा विस्तार जहाँ उस चीज का अंत होता है। किसी ओर का अंतिम सादा सिरा। जैसे—खेत, चौकी या तख्ते का किनारा। २. अधिक लंबी और कम चौड़ी वस्तु के वे दोनों सिरे, जहाँ उसकी चौड़ाई का अंत होता है। लंबाई के बल का सारा विस्तार या सिरा। जैसे—चादर या धोती का किनारा,नदी का किनारा। ३. किसी वस्तु के समूचे विस्तार का वह भाग जहाँ किसी दिशा में उसके विस्तार का अंत होता है। जैसे—पैसे या रुपए का किनारा,समुद्र का किनारा। मुहावरा—किनारे पहुँचना=अंत या समाप्ति के पास पहुँचना। किनारे लगाना-पूर्णता या समाप्ति तक पहुँचाना जैसे—इतने दिनों बाद आपने ही यह काम किनारे लगाया है। (किसी व्यक्ति को) किनारे लगाना=कष्ट या संकट से किसी का उद्धार या मुक्ति करना। ४. बगल। पार्श्व। मुहावरा—किनारा खींचना=संबंध तोड़कर अलग या दूर होना। किनारे न जाना-कुछ भी संपर्क या संबंध न रखना। किनारे बैठना या होना-बिना कोई सबंध रखे अलग या दूर रहना। ५. कपड़ों आदि में चौड़ाई का वह अंतिम विस्तार जिस पर शोभा या सजावट के लिए कुछ अलग प्रकार या रंग की बनावट अथवा बेल-बूटे आदि होते हैं। हाशिया। (बार्डर)।
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किनारी  : स्त्री० [हिं० किनारा] वस्त्रों आदि के किनारे पर लगाई जानेवाली रुपहले या सुनहले गोटे की पट्टी।
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किनारे  : क्रि० वि० [हिं० किनारा] १. सीमा पर। २. तट पर। पद—किनारे-किनारे=किसी किनारे से सटकर या उसके पास होते हुए। ३. अलग। मुहावरा—किनारे रहना=अलग या दूर रहना।
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किन्नर  : पुं० [सं० किम्-नर, कर्म० स०] [स्त्री० किन्नरी] १. पुराणानुसार देवलोक या स्वर्ग के एक प्रकार के गायक उपदेवता जिनका मुख घोड़े के समान कहा गया है। २. आज-कल गाने-बजाने का पेशा करनेवाली एक जाति।
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किन्नरी  : स्त्री० [सं० किन्नर+ङीष्] किन्नर जाति की स्त्री। स्त्री० [सं० किन्नरी=वीणा] १. एक प्रकार का छोटा तंबूरा। २. छोटी सारंगी।
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किन्ह  : सर्व०=किन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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किन्हीं  : सर्व० [हिं० किन] किसी का बहुवचन रूप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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किन्हों  : सर्व० [हि० किन] ‘किन’ का वह रूप जो उसे कर्त्ता होने की दशा में प्राप्त होता है। जैसे—आपसे किन्होंने कहा था ?
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