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ऐंठ  : स्त्री० [हिं० ऐंठना] १. ऐंठने की क्रिया या भाव। २. बल। मरोड़। ३. प्रकृति का स्वभाव, व्यवहार आदि में, दिखाई देनेवाला दुराग्रह या हठ। अकड़। ४. अपनी बात पर अड़े रहने की प्रवृत्ति। ५. घमंड। शेखी। ६. दे० ‘ऐंठन’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऐंठन  : स्त्री० [हिं० ऐंठना] १. ऐंठने की अवस्था या भाव। २. ऐंठने के कारण पड़ा हुआ बल। मरोड़। ३. वात आदि के प्रकोप के कारण शरीर के किसी अंग में रह-रहकर पड़नेवाला बल या होनेवाला मरोड़ जिसमें वह अंग पीड़ादायक रूप में ऐंठता या ऐंठता हुआ जान पड़ता है। (स्पाज्म) जैसे—पेट, पैर या हाथ में होनेवाली ऐंठन।
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ऐंठना  : अ० [सं० आवर्त्तन, प्रा० आवहन] १. किसी वस्तु में बल पड़ने के कारण उसका किसी ओर मुड़ना या संकुचित होना। २. संकुचित होना। खिंचना। तनना। ३. अकड़, दुराग्रह या शेखी दिखलाना। इतराना। मुहावरा—ऐंठी वैंठी करना (क) अकड़ दिखलाना। (ख) बहाना करना। ४. वात-विकार आदि के कारण शरीर के किसी अंग में रह-रहकर पीड़ा-कारक रूप में बल पड़ना या मरोड़ होना। जैसे—पेट या हाथ पैर ऐंठना। मुहावरा—(किसी की) ऐंठ जाना या ऐंठकर रह जानाबहुत ही विवशता की दशा में और चटपट मर जाना। जैसे—एक कै आते ही वह ऐंठ गया। स० १. किसी चीज में बल डालना। कोई चीज बलपूर्वक दबाते हुए घुमाना। मरोड़ना। (टिवस्ट) जैसे—कान ऐंठना। २. धूर्त्तता या धोखे से किसी से कोई चीज लेना या धन वसूल करना। झँसना। जैसे—वह इसी तरह सबसे रूपए ऐंठकर ले जाता है।
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ऐंठवाना  : स० हिं० ऐंठना का प्रे०रूप] ऐंठने का काम दूसरे से कराना। किसी को कुछ ऐंठने में प्रवृत्त करना।
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ऐंठा  : पुं० [हिं० ऐंठना] १. एक उपकरण जिससे रस्सी-रस्से आदि बटते हैं। २. घोंघा। वि० प्रायः ऐंठ या शेखी दिखानेवाला।
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ऐंठा  : वि० [सं० उच्छिष्ट] १. खाकर छोड़ा हुआ। जूठा। २. जिसका उपभोग किया जा चुका हो। उदाहरण—ऐठौ आतम सम अधम।—प्रिथीराज।
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ऐंठाना  : स० [ऐंठना का प्रे० रूप] ऐंठवाना। अ०=ऐंठना।
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ऐंठू  : वि० [हिं० ऐंठना] १. बहुत ऐंठ (घमंड) दिखानेवाला। २. दूसरों का माल ऐंठनेवाला।
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