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आरोप  : पुं० [सं० आ√रुह् (बीज उत्पन्न करना)+णिच्,पुक्+घञ्] [भू०कृ०आरोपित,वि० आपोप्य०कर्त्ता आरोपक] १. ऊपर से या कहीं से लाकर बैठाना या लगाना। जैसे—कही से कोई पेड़-पौधा लाकर उसका आरोप करना। २. साहित्य में किसी वस्तु में दूसरी वस्तु का गुण या धर्म लाकर लगाना या उसकी कल्पना करना। ३. किसी के संबंध में यह कहना कि अमुक अनुचित दंडनीय या नियम-विरुद्ध कार्य किया है। (एलिगेशन) मुहावरा—(किसी पर कोई) आरोप लगाना=(क) साधारण रूप में यह कहना कि इसने अमुक अनुचित काम किया है। (ख) विधिक क्षेत्र में, आरंभिक जाँच गवाही आदि के बाद न्यायालय का यह स्थिर करना कि अभियुक्त अमुक अपराध का कर्त्ता हो सकता है। दफा लगाना। ४. अधिकारपूर्वक किसी पर कोई कर या शुल्क नियत करना। (लेवी)।
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आरोप-फलक  : पुं० [ष० त०] वह फलक या लेख्य, जिसमें न्यायालय द्वारा किसी पर लगाये हुए आरोपों आदि का विवरण लिखा होता है। (चार्ज शीट)।
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आरोपक  : वि, [सं० आ√रुह्+णिच्,पुक्+ण्वुल्-अक] १. आरोप करनेवाला। २. अभियोग या दोष लगानेवाला।
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आरोपण  : पुं० [सं० आ√रुह्+णिच्+पुक्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आरोपित, वि० आरोप्य] आरोप करने की क्रिया या भाव।
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आरोपना  : स० [सं० आरोपण] आरोप या आरोपण करना। लगाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आरोपित  : भू० कृ० [सं० आ√रुह्+णिच्, पुक्+क्त] १. जिसका आरोपण हुआ हो। स्थापित किया या लगाया हुआ। २. रोपा हुआ।
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आरोपी (पिन्)  : वि० [सं० आ√रुह्+णिच्, पुक्+णिनि]-आरोपक।
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आरोप्य  : वि० [सं० आ√रुह्+णिच्,पुक्+यत्] १. आरोप किये जाने के योग्य। जिसपर आरोप करना उचित या संगत हो। २. रोपे जाने के योग्य।
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आरोप्यमाण  : वि० [सं० आ√रुह्+णिच्, पुक्+यक्+शानच्] जिसमें किसी वस्तु या तत्त्व का आरोप किया जाए। जैसे—दूध ही मेरा जीवन है में दूध आरोप्यमाण और ‘जीवन’ आरोप्य है।
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