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बोल-चाल  : स्त्री० [हिं० बोलना+चालना] १. मिलने-चुलने या साथ रहनेवाले लोगों में होनेवाली बात-चीत। वार्तालाप। जैसे—आज-कल उन दोनों में बोल-चाल बंद हैं। २. वह संबंध-सूचक अवस्था या स्थिति जिसमें परस्पर उक्त प्रकार की बात-चीत होती है। ३. बात-चीत करने का ढंग या प्रकार। जैसे—बोल-चाल से तो वे पंजाबी ही जान पड़ते हैं। ४. साहित्यिक क्षेत्र में मुहावरों से भिन्न वे विशिष्ट गढ़े हुए पद जिनका प्रयोग कुछ निश्चित प्रचलित अर्थ में ही होता है। जैसे—(क) मुझे डर है कि कहीं कुछ उन्नीस-बीस (अर्थात् कोई सामान्य अनिष्ट कारक बात) न हो जाय। (ख) वे घर बार छोड़कर त्यागी हो गये। (ग) उन लोगों में खूब तू तू मैं मैं हुई। (घ) आज-कल तो उन दोनों में साहब-सलामत भी बन्द हैं। उक्त वाक्यों में उन्नीस-बीस घर-बार, तू-तू मैं मैं और साहब-सलामत पर बोल-चाल के हैं। विशेष—ऐसे अवसरों पर उन्नीस-बीस की जगह बीस-इक्कीस घर-बार की जगह मकान-बार, तू-तू मैं-मैं की जगह हम तुम तुम-तुम और साहब सलामत की जगह जनाब-सलामत या साहब-खैरियत सरीखे पदों का प्रयोग नहीं हो सकता। उर्दू में इसी को ‘रोजमर्रा’ कहते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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