शब्द का अर्थ
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बुक :
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स्त्री० [फा० बुक़] १. कलफ किया हुआ एक प्रकार का महीन कपड़ा जो बच्चों की टोपियों में अस्तर देने या अँगिया, कुरती, जनानी चादरें आदि बनाने के काम में आता है। २. एक प्रकार की महीना पन्नी या वरक। स्त्री० [अं०] किताब। पुस्तक। |
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समानार्थी शब्द-
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बुकचा :
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पुं० [तुं० बुक्चः] [स्त्री० अल्पा० बुकची] १. वग गठरी जिसमें कपड़े बँधे हुए हों। २. गठरी। |
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बुकची :
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स्त्री० [हिं० बुकची+ ई (प्रत्य०) १. छोटी गठरी। २. वह थैली जिसमें दरजी सुई, धागा आदि रखते हैं। स्त्री०=बकुची। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बुकंदना :
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सं० [सं० भक्षण हि० भखना] भोजन करना। खाना। उदा०—भीलणी का बेर सुदामा का तंदुल भर मुठड़ी।—मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बुकना :
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अ० [हिं० बुकना का अ०] बुका या पीसा जाना। चूर्ण होना। पुं०=बुकनी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बुकनी :
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स्त्री० [हिं० बूकना+ई (प्रत्य०)] किसी चीज का महीन पीसा हुआ चूर्ण। जैसे—रंग की बुकनी। |
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बुकवा :
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पुं० [हिं० बूकना] १. उबटन। वटना। २. दे० ‘बुक्का’। |
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बुकस :
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पुं० [सं० बुक्का] भंगी। मेहतर। हलाल खोर। |
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बुका :
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पुं०=बुक्का। |
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बुकार :
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पुं० [देश०] वह बालू जो बरसात के बाद नदी अपने तट पर छोड़ जाती हो और जिसमें कुछ अन्न आदि बोया जा सकता हो। भाट। |
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बुकुन :
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पुं० [हिं० बूकना] १. बुकनी। २. किसी प्रकार का पाचक चूर्ण। |
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बुकौर :
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पुं० [हिं० बूक=कलेजा] संतप्त होकर मन ही मन रोने की क्रिया या भाव। |
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बुक्क :
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पुं० [सं० बुक्क् (शब्द करना)+अच्] १. हृदय। २. बकरा। ३. समय। |
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बुक्कन :
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पुं० [सं० बुकक्√(कहना)+ल्युट् अन] १. कुत्ते को भौंकना। २. पशुओं का शब्द करना। |
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बुक्कस :
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पुं० [सं०=पुक्कस पृषो० पस्यव |
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बुक्का :
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स्त्री० [सं बुक्क+टाप्] १. हृदय। कलेजा। २. गुरदे का मांस। ३. रक्त। लहू। ४. बकरी। ५. फूँककर बजाया जानेवाला एक तरह का पुरानी चाल का बाजा। पुं० [हिं० बूकना] १. बूका अर्थात् पीसा हुआ चूर्ण विशेषतः चूर्ण के रूप में लाया हुआ पदार्थ। २. अबरक का चूर्ण। |
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बुक्की :
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स्त्री० [सं० बुक्क+ङीष्] हृदय। |
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