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तोता  : पुं० [फा०] [स्त्री० तोती] १. एक विशिष्ट प्रकार के पक्षियों को प्रसिद्ध जाति या वर्ग जिसमें से कुछ उप-जातियाँ ऐसी होती हैं जिनके तोते मनुष्य की बोली की ठीक-ठीक नकल उतारते हुए बोलना सीख लेते और प्रायः इसी लिए घरों में पाले जाते हैं। कीर। सुग्गा। सूआ। विशेष–इस जाति के पक्षियों की चोंच अंकुड़ीदार या नीचे की ओर घूमी हुई होती है, पर कई तरह के चमकीले रंगों के होते हैं और पैरों में दो उँगलियों आगे की ओर तथा दो पीछे की ओर होती हैं। मुहावरा–तोता पालना=दोष, दुर्यवसन, रोग को जान-बूझकर अपने साथ लगाये रहना, उससे छूटने का प्रयत्न न करना। तोते की तरह आँखें फेरना या बदलना-बहुत वेमुरौवत होना। विशेष–कहते है कि तोता चाहे कितने दिनों का पालतू क्यों न हो, पर जब एक बार पिंजरे के बाहर निकल जाता है तब फिर अपने पिंजरे या मालिक की तरफ देखता तक नहीं। इसी आदार पर यह मुहावरा बना है। मुहावरा–तोते की तरह पढ़ाना-बिना समझे-बूझे पढते या रटते चलना। हाथों के तोते उड़ना-इस प्रकार बहुत घबरा जाना कि समझ में न आवे कि अब क्या करना चाहिए। पद–तोता चश्म। २. बन्दूक का घोड़ा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
तोता-चश्म  : वि० [फा०] [भाव० तोता-चश्मी] १. जिसकी आँखों में तोते की तरह लिहाज या संकोच का पूर्ण अभाव हो। २. बे-वफा। बे-मुरौवत।
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तोता-चश्मी  : स्त्री० [फा० तोताचश्म+ई (प्रत्यय)] तोताचश्म होने की अवस्था, गुण या भाव।
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तोतापरी  : पुं० [देश०] एक तरह का बढिया आम।
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